Social Icons

Pages

Thursday 12 July 2012

उदारता एवं क्षमा मनुष्य को महान बनाती है

किसी जमाने में ब्रहृद्तत काशी पर राज्य करते थे ।  उनके शासन-काल काशी में एक बड़ा धनी व्यक्ति रहता था ।  उसने नौ करोड़ रुपये कमाये ।  इसलिये इस बीच जब उसके एक पुत्र पैदा हुआ तो अमीर ने उसका नामकरण नवकोटि नारायण किया ।

अमीर आदमी अपने बेटे नारायण की हर इच्छा की पूर्ति[Fulfill] करता था ।  इसका नतीजा यह हुआ कि बालक नारायण नटखट और उद्दण्ड[Unruly] हो गया ।  नारायण जब जवान हुआ, तब अमीर ने एक सुन्दर कन्या के साथ उसकी शादी कर दी ।  लेकिन इसके थोड़े ही दिन बाद अमीर का देहांत हो गया ।

बचपन से नारायण पानी की तरह धन खर्च करता गया ।  आखिर उसके पिता की मौत के समय तक सारी संपति स्वाहा[Got Over] हो गई ।  उल्टे कर्ज का बोझ उसके सर पर आ पड़ा कर्जदारों ने आकर कर्जा चुकाने के लिये उस पर दबाब डालना शुरु किया ।  उस हालत में नारायण को अपनी जिंदगी के प्रति विरक्ति[Disenchantment] पैदा हो गई ।  उसने सोचा कि इस अपमान को सहने के बदले कहीं मर जाना अच्छा है ।  आखिर उन से बचने के ख्याल से बोला, महाशयो, मैं गंगा के किनारे अमुक[Such and such] पीपल के पेड़ के पास जा रहा हूँ ।  वहाँ पर मेरे पुरखों द्वार गाड़ा हुआ खजाना है ।  आप लोग ऋण-पत्र लेकर कृपया वहाँ पर आ जाइयेगा ।

कर्जदार नारायण की बातों पर यकीन करके गंगा के किनारे पहुँचे ।  नारायण ने खजाने को ढूँढने का अभिनय[Acting] किया ।  करीब आधी रात तक इधर-उधर खोजता रहा ।  आखिर कर्जदारों को बेखबर [Out of touch with] पाकर नारायण, जय परमेश्वर की, चिल्ला कर वह गगा में कूद पड़ा ।  गंगा की धारा [Stream] उसे दूर बहा ले गई ।


उस जमाने में बोधिसत्व एक हिरन का जन्म धारण कर अन्य हिरणों से दूर गंगा के किनारे एक आम के बगीचे में रहने लगा था ।  उस हिरन की अपनी एक अनोखी विशेषता थी ।  उसकी देह सोने की कांति से चमक रही थी ।  लाख जैसे लाल खुर[Toe,Heel], चाँदी के सींग, हीरों की कणियों के समान चमकने वाली आँखे, उसकी अकृति की विशेषताएँ थी ।  आधी रात के वक्त उस हिरन को एक मनुष्य की करुण पुकार सुनाई दी ।  हिरन यह सोचते हुए कि यह कैसा आर्तनाद है, नदी में कूदकर उस आवाज की दिशा में तैरते हुए नारायण के पास पहँचा ।

एक दिन हिरन ने नारायण को समझाया, बेटा, मैं तुम्हें इस जंगल पार कराकर तुम्हारे राज्य का रास्ता बता देता हूँ ।  तुम अपने गाँव चले जाओ ।  लेकिन मेरी एक शर्त है, राजा या कोई और व्यक्ति भले ही तुम पर दबाब डाले, या लोग दिखावे, तुम यह प्रकट न करना कि अमुक जगह सोने का हिरन है ।

नारायण ने हिरन की बात मान ली ।  उसकी बातों पर विश्वास करके हिरन ने नारायण को अपनी पीठ पर बिठाया, और जंगल पार करा कर उसे कासी जाने वाले रास्ते पर छोड़ दिया ।

नारायण जिस दिन काशी नगर में पहुँचा, उस दिन वहाँ एक अदभुत घटना हुई । वह यह कि रानी को सपने में एक सोने का हिरन ने दर्शन देकर उसे धर्मोपदेश[Sermon] दिया था ।

रानी ने राजा को अपने सपने का समाचार सुनाकर कहा, अगर दुनिया में ऐसा
हिरन न होता तो मुझे कैसे दिखाई देता।  चाहे वह कहीं भी क्यों न हो, उसे पकड़ लाने पर मेरे प्राण बच सकते है, वरना नहीं ।

रानी के लिए हिरन मँगवाने के लिये राजा ने एक उपाय किया। उन्होंने एक हाथी के हौदे पर एक सोने का बक्स रखवा दिया और उसमें एक हजार सोने के सिक्के भरवा दिये। तब निश्चय किया कि उसका जुलूस निकाला जाये और जो आदमी सब से पहले सोने के हिरन का समाचार देगा, उसको बक्स के भीतर सोने के सिक्के उपहार के रुप में दिये जायेंगे ।  इस आशय का ढिंढोरा[Trumpet] सब जगह पिटवाया गया। उसी वक्त काशी नगर में नारायण पहुँचा ।

उसने सेनापति के पास पहुँच कर निवेदन किया, महाशय, मैं उस सोने के हिरन का सारा समाचार जानता हूँ। आप मुझे राजा के पास ले जाइये ।

इसके बाद नारायण ने राजा और उनके परिवार को साथ ले हिरन का निवास दिखाया ।  वह थोड़ी दूर जा खड़ा हुआ।
राजा के परिवार ने कोलाहल[ turmoil, clamour ] करना शुरु किया ।  हिरन के रुप में रहने वाले बोधिसत् ने उनकी आवाज सुनी ।

शायद कोई महान अतिथि आया होगा ।  उनका स्वागत करना चाहिये ।  यों सोचकर वह उठ खड़ा हुआ और सब लोगों से बचकर वह सीधे राजा के पास पहुंचने के लिये दौड़ा ।

हिरन की तेज गति को देख राजा आर्श्च्य में आ गये ।  धनुष और बाण लेकर हरिन पर निशाना लगाया ।  इस पर हिरन ने पूछा, महाराज, रुक जाइये आपको किसने मेेरे निवास का पता बताया है ।

राजा के कानों में ये शब्द बड़े ही मधुर मालूम हुए ।  स्वतः ही उनके हाथों से धनुष और बाण नीचे गिर गये ।

बोधसत्व ने मीठे स्वर में फिर राजा से पूछा, महाराज, आपको किसने मेरे निवास का पता बताया है ।

राजा ने नारायण की ओर उंगली का इशारा किया ।



इस पर बोधसत्व ने यों तत्वोपदेश किया, शास्त्रों में वर्णित ये बातें बिलकुल सही है कि इस दुनिया में मनुष्य से बढ़कर कोई भी प्राणी कृतघ्न[Ungrateful] नहीं है ।  जानवर और चिड़ियों  की भाषा भी समझी जा सकती है, लेकिन मनुष्य की बातों को समझना ब्रहृा के लिये भी संभव नहीं है ।  इन शब्दों के साथ बोधसत्व ने वह सारा वृतांत राजा को सुनाया कि उसने नारायण की रक्षा करके कैसे उससे वचन लिया था ।  राजा ने क्रोध में आकर कहा, ओह यह बात है ।  ऐसे कृतघ्न दुनिया के लिये भी बोझ है ।  यह महान पापी है ।  मैं अभी इसका वध करता हूँ ।  यों कहकर राजा ने अपने तरकस[Quiver] से तीर निकाला ।

बोधसत्व ने राजा को रोकते हुए कहा, महाराज, इसके प्राण न लीजिये ।  अगर यह जिन्दा रहेगा तो कभी-न-कभी अपनी भूल समझकर यह अपनी जिंदगी को सुधार लेगा ।  आप कृपया अपने वचन के मुताबिक उसे जो पुरस्कार मिलना चाहिये, उसको दे दीजिये ।  यही बात न्याय संगत है ।

राजा ने बोधिसत्व के उपदेश का पाल किया ।

बोधिसत्व की उदारता, क्षमा आदि महान गुणों को राजा ने समझ लिया ।  उनको एक महात्मा मानकर अपने राज्य के सलाहकार के रुप में नियुक्त किया ।


No comments:

Post a Comment